April 19, 2025

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महाकुम्भ में सर्दी की परवाह किए बिना नंगे पांव चलते हुए भक्तों की आस्था,कुंभ में व्यवस्था पहले से बेहतर

महाकुम्भ में सर्दी की परवाह किए बिना नंगे पांव चलते हुए भक्तों की आस्था,कुंभ में व्यवस्था पहले से बेहतर


महाकुंभ के पावन अवसर पर लाखों श्रद्धालुओं का रेला संगम की ओर बढ़ रहा है। सर्दी की परवाह किए बिना नंगे पांव चलते हुए भक्तों की आस्था देखते ही बनती है। इस बार के कुंभ में व्यवस्था पहले से बेहतर है। श्रद्धालुओं का कहना है कि गंगा मइया के स्पर्श से ही इस कलियुग में मुक्ति है।

 महाकुंभ नगर में रात गहरा रही है। कोहरा है, जैसे अमृत बरस रहा। दूर-दूर तक चहुंओर बल्ब बादलों में तारों से अहसास करा रहे हैं। सर्दी चरम पर है। ठिठुरन है। हवा कानों में सांय-सांय कर रही है। धनु के 15 मकर पच्चीस, चिल्ला जाड़ा दिन चालीस वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। तभी बगल से एकदम तीर की मानिंद एक परिवार के आठ लोग नंगे पांव दौड़ते जैसे निकले।

पास खड़े दूसरे सज्जन स्वयं ही सवाल करते हैं। नंगे पांव, ऐसी कड़क सर्दी व रेतीली धरती में धंसते पांवों में पड़ी सिकुड़न देख रहे हैं आप। अरे, ये तो पुण्य काल है। यहां तो रोज का ही ऐसा क्रम है। ये गंगा मइया, यमुना मइया और अदृश्य सी समझी जाने वाली सरस्वती के लिए इनकी आस्था है। ऐसे ही लाखों, करोड़ों लोग हर अमृत स्नान पर पुण्य कमाने आते हैं।

नंगे पांव तेज कदमों में चल रहे परिवार के कदम भी आपसी वार्ता सुनकर थम गए। बात परिचय से आगे बढ़ी। बोले महाराष्ट्र से आए हैं। हम वासुदेव महाराज टापरे, ये पत्नी वनिता वासुदेव टापरे हैं। भूपेंद्र महादेव, अनिता महादेव, पुष्पा भुवनेश्वर चापले व सारिका छत्रपाल मानकर की अंगुलियां माले पर तेजी से चल रहीं। हर गुरिया के साथ जय बजरंगबली, जय श्री राम।

बोल पड़े, देखिए, राजा सगर के पुरखों को तारने वाली गंगा मइया के स्पर्श से ही इस कलियुग में मुक्ति है। ऐसे में क्या सर्दी, क्या कोहरा और क्या बदली। बस ऐसे पल आत्मसात कर लें। यही महाकुंभ है। नंगे पांव चलना कोई बड़ी बात नहीं है। महाकुंभ अबकी बार जैसा सजा है, ऐसा पहले नहीं देखा। चार कुंभ में आ चुके हैं। अबकी व्यवस्था 100 प्रतिशत है। पहले कुछ नहीं थी। 950 किलोमीटर दूर से संकल्प लेकर आए हैं।

भारत देश सुजलाम, सुफलाम वाला होना चाहिए। इसके लिए पहली डुबकी लगाएंगे। गंगा मइया से संस्कृति जिंदा है। भावी पीढ़ी आगे बढ़ेगी। वो परिवार आगे बढ़ा, तब तक पास खड़े सज्जन बोले, आप भी डुबकी लगा लीजिए। सर्दी का नहीं सोचिए। ये संकल्प लेने का समय है। सनातन के गर्व का पल है। अब इसमें काहे की सर्दी और काहे का भेदभाव। तभी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का रेला आगे बढ़ा।

मानों पास ही किले से निकलकर वैश्विक स्तर पर भारत का भगवा परचम फहरा देना चाहते हों। पास ही लेटे बजरंगबली के मंदिर के शिखर का ध्वज लहरा रहा। बल्बों की सफेद चांदनी के बीच स्वर्णिम आभा बिखेर रहा। पांटून पुलों, आसपास की रेतीली धरती पर बस सिर ही सिर संगम की ओर बढ़े चले जा रहे। अध्यात्म की ऊर्जा की गर्माहट से वे सर्दी को कहीं पास नहीं ठिठकने दे रहे हैं। आस्था, मौसम और अपने ही मिजाज व अंदाज में हर कोई मुक्ति की तलाश में है।

महाकुंभ नगर की घुमावदार सड़कों में बस चलते जा रहे हैं। बढ़ते जा रहे हैं। गंगा, यमुना व अदृश्य हो चली सरस्वती की धारा को महसूस करने के लिए। महाकुंभ का अमृत अपने मन के घड़े में भरकर सारे कष्टों को दूर करने की सोच बलवती हो रही। राजा से रंक तक एक घाट पर हर हर गंगे, जय-जय महाकुंभ कर रहे हैं।


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